इन दिनों डेयरी उधोग में भैंस पालन का काफी महत्व है। भैंस और विदेशी नस्ल की गायें ज्यादा मात्रा में दूध देती हैं।हमारे देश भारत में 55 प्रतिशत दूध अर्थात 20 मिलियन टन दूध भैंस पालन से मिलता है। हर जगह से हर गाँव से लोग भैंस पालन करते हैं। लेकिन उन्हे किसी एक गलती की वजह से पशुपालक को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। दुधारू पशुओं में अनेक कारणों से बहुत सी बीमारियाँ होती है| सूक्ष्म विषाणु, जीवाणु, फफूंदी, अंत: व ब्रह्मा परजीवी, प्रोटोजोआ, कुपोषण तथा शरीर के अंदर की चयापचय (मेटाबोलिज्म) क्रिया में विकार आदि प्रमुख कारणों में है।
इन बीमारियों में बहुत सी जानलेवा बीमारियां है। कई बीमारियाँ पशु के उत्पादन पर कुप्रभाव डालती है। कुछ बीमारियाँ एक पशु से दूसरे पशु को लग जाती हैजैसे मुह व खुर की बीमारी, गल घोंटू, आदि, छूतदार रोग कहते हैं। कुछ बीमारियाँ पशुओं से मनुष्यों में भी आ जाती है जैसे रेबीज़ (हल्क जाना), क्षय रोग आदि, इन्हें जुनोटिक रोग कहते हैं। अत: पशु पालक को प्रमुख बीमारियों के बारे में जानकारी रखना आवश्यक है ताकि वह उचित समय पर उचित कदम उठा कर अपना आर्थिक हानि से बचाव तथा मानव स्वास्थ्य की रक्षा में भी सहयोग कर सके।
भैंस पालन के रोग नियंत्रण एवं बचाव आईए जाने :-
मुर्रा भैंस में मुंह खुर रोग :
यह विषाणु जनित तीव्र संक्रमण से फैलने वाला रोग मुख्यत: विभाजित खुर वाले पशुओं में होता है भैंस में यह रोग उत्पादन को प्रभावित करता है एवं इस रोग से संक्रमित भैंस यदि गलघोटू या सर्रा जैसे रोग से संक्रमित हो जाये तो पशु की मृत्यु भी हो सकती है। यह रोग एक साथ एक से अधिक पशुओं को अपनी चपेट में कर सकता है ।
मुर्रा भैंस में मुंह खुर रोग का संक्रमण :
रोग ग्रसित पशु स्राव से संवेदनशील पशु में साँस द्वारा यह रोग अधिक फैलता है क्योंकि यह रोगी पशु के सभी स्रावों में होता है। दूध एवं मांस से मुन्ह्खुर संक्रमण की दर कम है जबकि यह विषाणु यातायात के द्वारा न फैलकर वायु द्वारा जमीनी सतह पर 10 किलोमीटर एवं जल सतह पर 100 किलोमीटर से भी अधिक की दूरी अनुकूल परिस्थितियां मिलने पर तय कर सकता है । इसके अलावा जो पशु भूतकाल में इस रोग से ग्रसित हो चूका है उससे भी महामारी की शुरुआत हो सकती है ।
मुर्रा भैंस में मुंह खुर रोग का लक्षण :
- मुंह से लार टपकना
- बुखार आना
- मुंह, जीभ, मसूड़ों, खुरों के बीच में, थन एवं लेवटी पर छाले पड़ना
- पशु चरना एवं जुगाली करना कम कर देता है या बिल्कुल बंद कर देता है
- पशु लंगडाकर चलता है विशेष कर जब खुरों में कीड़े हो जाते हैं
- दूध उत्पादन में एकदम गिरावट आती है
मुर्रा भैंस में मुंह खुर रोग का नियंत्रण एवं बचाव :
जिस क्षेत्र या फार्म आर मुह खुर महामारी का प्रकोप हुआ है उस भवन को हलके अम्ल, क्षार या धुमन द्वारा विषाणु मुक्त किया जाना चाहिए । प्रभावित क्षेत्रों में वाहनों व पशुओं की आवाजाही पर रोक लगनी चाहिए । प्रभावित पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग स्थान पर रखना चाहिए। और इनपर ध्यान रखना चाहिए ताकि संक्रमण और ना फैल जाए।
मुर्रा भैंस में गलघोटू रोग : लक्षण एवं बचाव
भारत में भैंस के स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला प्रमुख जीवाणु रोग, गलघोटू है जिससे ग्रसित पशु की मृत्यु होने की सम्भावना अधिक होती है ।यह रोग “पास्चुरेला मल्टोसीडा” नामक जीवाणु के संक्रमण से होता है । सामान्यरूप से यह जीवाणु श्वास तंत्र के उपरी भाग में मौजूद होता है एवं प्रतिकूल परिस्थितियों के दबाव में जैसे की मौसम परिवर्तन, वर्षा ऋतु, सर्द ऋतु , कुपोषण, लम्बी यात्रा, मुंह खुर रोग की महामारी एवं कार्य की अधिकता से पशु को संक्रमण में जकड लेता है। यह रोग अति तीव्र एवं तीव्र दोनों का प्रकार संक्रमण पैदा कर सकता है ।
मुर्रा भैंस में गलघोटू रोग का संक्रमण : संक्रमित पशु से स्वस्थ पशु में दूषित चारे, लार द्वारा या श्वास द्वारा स्वस्थ पशु में फैलता है । यह रोग भैंस को गे की तुलना में तीन गुना अधिक प्रभावित करता है एवं अलग – अलग स्थिति में प्रभावित पशुओं में मृत्यु दर 50 से 100% तक पहुँच जाती है ।
मुर्रा भैंस में गलघोटू रोग का लक्ष्ण :
- एकदम तेज बुखार (107⁰F तक) होना एवं पशु की एक घंटे से लेकर 24 घंटे के अन्दर मृत्यु होना या पशु किसान को बिना लक्ष्ण दिखाए मृत मिलना ।
- प्रचुर लार बहना ।
- नाक से स्राव बहना एवं साँस लेने में तकलीफ होना ।
- आँखें लाल होना ।
- चारा चरना बंद करना एवं उदास होना।
- गले,गर्दन एवं छाती पर दर्द के साथ सोजिश आना ।
- भैंस में गलघोटू रोग का उपचार : यदि पशु चिकित्सक समय पर उपचार शुरू कर देता है तब भी इस जानलेवा रोग से बचाव की दर कम है।ओक्सीटेट्रासाईक्लीन (Neoxyvita Forte -निओक्सीविटा फोर्ट) जैसे एंटी बायोटिक इस रोग के खिलाफ कारगर हैं । साथ अन्य जीवन रक्षक दवाइयाँ भी पशु को ठीक करने में मददगार हो सकती हैं।
मुर्रा भैंस में गलघोटू रोग का बचाव:
ऐसा होने पर बीमार भैंस को तुरंत स्वस्थ पशुओं से अलग करें एवं उस स्थान को जीवाणु रहित करें एवं सार्वजानिक स्थल जैसे की चारागाह एवं अन्य स्थान जहाँ पशु एकत्र होते हैं वहां न ले जाएँ क्योंकि यह रोग साँस द्वारा साथ पानी पीने एवं चारा चरणे से फैलता ह। मरे हुए पशुओं को कम से कम 5 फुट गहरा गड्डा खोदकर गहरा चुना एवं नमक छिडककर अच्छी तरह से दबाएँ ।
इन्हें ठीक रखने के लिए इनका टीकाकरण भी होता है जिससे भैंसों को रोगों से मुक्त रखा जा सके साथ ही रोग का टीकाकरण करने से गलघोटू रोग से होने वाली पशुमृत्यु दर में भरी कमी आ सकती है ।
यह रोग भैंसों मे पाई जाती है आप अपने मुर्रा भैंस तथा अन्य भैंसों को ध्यान देकर अच्छे से देखभाल करने पर जल्द ही बीमारियाँ ठीक हो जाती है । इसके साथ ही आप इनकी देख रेख तथा पशुपालन से संबंधित किसी ही चीज को ऑनलाइन खरीद सकते हैं तथा आप पशु ऑनलाइन भी खरीद सकते हैं । इसमे मेरापशु360 पशुपालन ऐप और वेबसाईट और जिससे आपको काफी सहायता मिल सकती है ।